Saturday, November 27, 2010

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का गृह ग्राम किसी परिचय का मोहताज नहींसीहोर जिले ने दिया मध्यप्रदेश को नेतृत्व



महेन्द्र ठाकुर, सीहोर नर्मदा के मुख्य तट पर बसा ग्राम जैत आज किसी परिचय का मोहताज नहीं है। पूर्वी छोर पर बसे इस गांव ने उस नेतृत्व को जन्म दिया, जिसने प्रदेश की तकदीर और तस्वीर दोनों बदल दी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस छोटे से गांव में जन्म लिया, यहीं खेले और आरंभिक शिक्षा प्राप्त की। धार्मिक आस्थाओं में विश्वास रखने वाले और मां नर्मदा के भक्त श्री चौहान ने नर्मदा घाटों का पुर्नउद्धार कर गांव के विकास को शुरूआत दी। यहां सड़क बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार किया। पौने बारह सौ की आबादी वाला गांव जैत आज अपनी किस्मत पर जरूर गर्व करता होगा। गांव में तो विभिन्न जाति, वर्ग और धर्म के लोग निवास करते हैं, पर यहां चौहान वर्ग का बाहुल्य है, जो मुख्यत: कृषि कार्य ये जुड़ा है। श्री चौहान ने मुख्यमंत्री बनते ही पहले तो प्रदेश की ओर ध्यान दिया, फिर पीछे मुड़कर देखा अपने गांव जैत की तरफ शायद उन्हें लगा कि उनके मुख्यमंत्री बनने से गांव के लोगों की उम्मीदों को पंख लग गए हंै। आज गांव चारों तरफ से पक्की सड़कों से जुड़ चुका है। मछवाई से जैत और डोबी से जैत यह दोनों सड़कें डामर रोड बन चुके हैं। जो जैत गांव को मुख्य मार्ग से जोड़ते हैं। संवाददाता महेन्द्र ठाकुर द्वारा एकत्र जानकारी के अनुसार अब आधा घंटे का सफर सात मिनट में संभव है। सरदारनगर से जैत और नारायणपुर नांदनेर मार्ग भी लगभग तैयार है। यहां श्री चौहान कभी धूल और कीचड़ से सनी गलियों में खेला कूदा करते थे, वहां अब सीसी रोड है। पहले यहां केवल एक प्रायमरी स्कूल था। अब चमचमाती बिल्डिंग में 11 वीं तक की शिक्षा बच्चे ग्रहण कर रहे हैं। जहां लोग नर्मदा स्नान कर पानी नदी से लाते थे अब घर बैठे नलजल योजना से पानी मिल रहा है। सेवा सहकारी समिति, आंगनवाड़ी, हेल्थ सेंटर सहजता से सुलभ हैं। मछली पालन करने वाले अधिक रहते हैं, इसलिए मछुआ भवन बनवाया जा रहा है तथा कृषक भवन भी बनेगा। गौरतलब है कि नर्मदा तट शाम ढलते ही यहां अंधेरे से घिर जाता था, वहीं अब इस घाट की शाम सौर ऊर्जा की रोशनी से नहा उठाती है, अब लोग बिना किसी भय के देर शाम तक नर्मदा स्नान कर सकते हैं। अभी यहां विदेशी प्रवासी पक्षी भी अपना डेरा जमाते हैं, जिससे नर्मदा की शोभा और भी द्विगुणीत हो उठती है। 2008 में इस गांव में लोकरंजन जैसा प्रतिष्ठापूर्ण सात दिवसीय सांस्कृति आयोजन हो चुका है।भाजपा मना रही है गौरव दिवस- सीएम के ग्राम में बन गई पक्की सड़कें। - बड़ा सांस्कृति कार्यक्रम का हुआ आयोजन।- नर्मदा तट सौर ऊर्जा की रोशनी से नहाया। - शिक्षा का स्तर जैत में काफी बढ़ा।- जैत को भी होगा किस्मत पर गर्व।पांच साल पहले मध्यप्रदेश को सीहोर जिले ने नेतृत्व दिया, उसी का सुखद परिणाम है कि प्रदेश विकास की ओर अग्रसर है तथा किसी भी मायने में पीछे नहीं है। अब श्री चौहान का गृह ग्राम जैत भी मुख्यधारा से जुड़कर विकास की ओर कदम बढ़ा रहा है।

पुलिस कर्मियों ने बच्चे को हथकड़ी लगाई


सीहोर खेलने-कूदने और पढ़ने की उम्र में कई बच्चे अपराध का रास्ता अख्तियार कर रहे हैं। जिस तेजी से नाबालिगों में अपराध की प्रवृत्ति बढ़ रही है, उससे न सिर्फ पुलिस की नींद उड़ गई है, बल्कि खुफिया तंत्र भी खासा चिंतित है। माता-पिता भी इसे लेकर बेहद परेशान हैं। पुलिस चाह कर भी अंकुश नहीं लगा पा रही। मनोचिकित्सक की मानें तो बच्चों में बढ़ रही आपराधिक प्रवृत्ति को समय रहते नहीं रोका गया तो परिणाम गंभीर हो सकते हैं। बुधवार को पुलिस कर्मियों ने एक बच्चे के हाथ में हथकड़ी डालकर जो जनचर्चा का विषय बना हुआ है। दोषी पुलिस कर्मियों पर कार्रवाई नहीं हो पा रही है। इस सम्बन्ध में पुलिस अधीक्षक केडी पाराशर का कहना है कि भौतिक चकाचौंध के कारण बच्चों में अपराध की भावना जगती है। बच्चे खासकर लूट, चोरी की वारदात कर अपनी आवश्कताओं की पूर्ति करने का प्रयास करते हैं। माता-पिता में बढ़ रहे झगड़ों के कारण भी बच्चों पर विपरीत असर पड़ता है। इस कारण भी वे अपराध का रास्ता पकड़ लेते हैं। बड़े-बुजुर्गों का मार्गदर्शन नहीं मिलना, बच्चों को नजर अंदाज करना भी बाल अपराध बढ़ा रहा है। उनका कहना है कि ऐसे मामले पुलिस के लिए भी मुश्किल खड़ी कर रहे हैं। मनोचिकित्सक का मतजिले में नाबालिगों में अपराध की भावना बढ़ने को लेकर संवाददाता महेन्द्र ठाकुर से चर्चा में मनोचिकित्सकों का कहना है कि कम हो रहे धार्मिक व नैतिक संस्कारों से ऐसा हो रहा है। साथ ही, भाग-दौड़ की जिंदगी के कारण अभिभावक बच्चों को समय नहीं दे पाते। ऐसे में बच्चों का ध्यान इस तरफ खिंच जाता है। समाज का बदलता ताना-बाना भी इसके लिए जिम्मेदार है। बच्चों में सफलता के शॉर्टकट अपनाने की भावना बढ़ने से वे अपराध की घटनाओं को अंजाम देते हैं। बच्चों की ऐसी गलतियों से परेशान माता-पिता अब बच्चों को लेकर मनोचिकित्सक के पास पहुंचने लगे हैं। अनेक लोगों का मानना है कि कुछ हद तक इसके लिए टीवी संस्कृति भी जिम्मेदार है। टीवी पर आपराधिक दृश्य देखकर बच्चों की मानसिकता उनकी नकल करने की होती है। परिणामस्वरूप बच्चों के आपराधिक वारदातों के मामले बढ़ रहे हैं। घर के बड़ों को बच्चों की पसंद पर नजर रखनी चाहिए।कहां है समाजसेवीसमय-समय पर शहर में समाजसेवी और विभिन्न राजनैतिक दल छोटे-छोटे मुद्दों को लेकर बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, लेकिन वास्तव में उन्हें हकीकत से कोई मतलब नहीं होता है। ताजा मामला तो इसी ओर इशारा कर रहा है। दो दिन हो गए हैं, इस मामले को, बच्चे को हथकड़ी लगाकर पुलिस कर्मियों ने घुमाया लेकिन कोई कार्रवाई अब नहीं हुई है। ऐसे रुक सकते हैं बाल अपराध- ऐसे रूक सकते हैं बाल अपराध - अभिभावक अपने बच्चों को समय दें।- बच्चों की गतिविधियों पर नजर रखें।- बच्चों को धार्मिक व नैतिक संस्कारों का ज्ञान दिया जाए।- माता-पिता अपने झगड़े बच्चों से दूर रखें।- बच्चों को नजरअंदाज नहीं करें।- बड़े-बुजुर्गो का सानिध्य मिले।
यहां संप्रेषण गृह नहीं है, बाहर के पुलिस कर्मियों ने बच्चे को हथकड़ी लगाई होगी।केडी पाराशर, पुलिस अधीक्षक

Friday, November 26, 2010

BREAKING NEWS


सीहोर। शहर में एक बालक को पुलिस के जवान हथकड़ी लगाकर ले जाते हुए, बुधवार का मामला..... फोटो- राजेन्द्र शर्मा गुरू

Monday, November 22, 2010

मंगल पांडे का नाम, लेकिन चैनसिंह का नही




महेन्द्र ठाकुर, सीहोर।

देश की आजादी की लड़ाई में शहर का भी अपना योगदान रहा हैं मगर उस योगदान को तवज्जों नहीं मिल पा रही है। देश को आजाद हुए एक दशक से अधिक का म्समय हो चुका है लेकिन चैन सिंह की छतरी आज भी शासकिाय आयोजनों की बाट जोह रही है।
जी हां देश में जब अंग्रेजी कुशासन का दौर चल रहा था तब उन्हें सीधे-सीधे चुनौती देने एवं ललकारने का साहस सीहोर की धरती पर कुंवर चैनसिंह ने दिखाया। उन्होंने अपने साथियों के साथ फिररंगियों से लोहा लिया उन्हें नाको चने चबवाएं, लेकिन अंत में वह वीरगति को प्राप्त हुए। यह विडम्बना यह है कि देश में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ पहली सशस्त्र क्रांति का शहीद मंगल पांडे को माना जाता है। मगर कुंवर चैनसिंह की शहदत को प्रमाणित दस्तावेजों के बाद भी नजर अंदाज किया जा रहा है। अंग्रेज परस्त, भोपाल नवाब बेगम सिकन्दर जहां सन 1844 से 1868 तक के शासनकाल में 6 अगस्त को सीहोर की अंग्रेज छावनी में हुए सशस्त्र सैनिक विद्रोह की गाथा सीहोर के गर्वीले सीने पर अंकित बलिदान की अमर दोस्ती है, लेकिन खेद है कि प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम 1857 के इतिहास में सीहोर के इस रक्त रंजित विद्रोह की क्रांति गाथा की सदैव से उपेक्षा की जाती रही है, जबकि यह सम्मान केवल सीहोर को मिलना चाहिए कि यहां के बहादुर राष्ट्र भक्त विद्रोही सिपाहियों ने गुलाम भारत की पहली स्वतंत्र सरकार की सिपाही बहादुर सरकार के नाम से सीहोर में स्थापना की थी और उनकी क्रांति पताकाएं हिन्दु मुस्लिम एकता को प्रतीक बनकर, निशान ए मोहम्मदी और निशान ए महावीरों के नाम से एक साथ सीहोर कोतवाली और कस्बा स्थित पुरानी निजामत पर फहराती रही। 10 मई 1857 की मेरठ उप्र से शुरू हुए अंग्रेजों के विरूद्ध सशस्त्र विद्रोह की क्रांतिकारी गर्म हवाओं ने मध्य भारत में सर्वप्रथम 3 जून 1857 को नीचम से प्रवेश किया। क्रांति की अंग्रेय शिखाएं जल्दी ही इंदौर जा पहुंची। एक जुलाई 1857 को इंदौर रेसीडेंसी से विद्रोह की लपटें उठने लगी। उसी समय कर्नल डयेरेन्ड इंदौर रेसीडेंसी छोडकऱ 16 अंग्रेज असफरों के साथ जान बचाकर देवास के रास्ते सीहोर भाग आया था। यह घटना 4 जुलाई 1857 को सीहोर छावनी में सुलग रही क्रांति की चिंगारी का आभास होते ही 20 वफादार सैनिकों के साथ सीहोर से भाग खड़ा हुआ था। उस समय सीहोर में केवल 23 अंग्रेज अफसर और उनके परिवार रह रहे थे, जिन्हें अंग्रेज परस्त भोपाल नबाव बेगम सिकन्दर जहां की भोपाल बटालियन की अभिरक्षा में सीहोर से सुरक्षित होशंगाबाद पहुंचा दिया गया था। अंग्रेज पोलिटिकल एजेन्ट मेजर रिचर्डस के पलायन से भोपाल कटिन्जेंट के सैनिकों के हौंसले बुलंद थे। भारत को अंगे्रजों की गुलामी से मुक्त कराने का उद्घोष सबसे पहले निकटवर्ती गांव जमोनिया के राव रणजीत सिंह को सुनाई दिया। ग्राम चांदबड़ के ठाकुर गोवर्धन सिंह गांवों में आजादी का अलेख जगाने में लगे थे फिर क्या था सीहोर के आसपास के ग्रामीण अंचलों के नौजवान उठ खड़े हुए। 14 जुलाई 1857 को सजात सखान के नेतृत्व में पिण्डारियों ने असिस्टेंट पोलिटिकल एजेंट के बैरसिया स्थित कार्यालय तथा ट्रेजरी खजाने पर हमला बोलकर खजाना लूट लिया। 6 अगस्त 1857 को सीहोर छावनी में घुड़ सवारी के रिसालदार मोहम्मद अली खान ने खुलेआम विद्रोह कर छावनी में लगे अंग्रेजों के झण्डे को उतार फेंका और भोपाल कांटिनजेंट के दौर अधिकारियों रिसालेदार वाली शाह और महावीर कोठा लारा बनाए गए सैनिक क्रांति के प्रतीक दो झण्डे एक हरे रंग का और दूसरा भगवा ध्वज जिन्हें वे निशान-ए-मोहम्मदी और निशान-ए-महावीरी कहते थे, महावीर कोठा और रज्जूलाल ने फहरा दिया। अंग्रेजों ने बाद में इन दोनों देश भक्तों महावीर और रज्जूलाल को अंग्रेज ध्वज उतारने और भारतीय ध्वज फहराने के अपराध में गोलियों से भून डाला। सीहोर कोतवाली में पदस्थ पुलिस अधिकारी छावनी के विद्रोही सिपाहियों के आतंक से आतंकित होकर कोतवाली छोडकऱ भाग खड़ा हुआ था। उन दिनां सीहोर सैनिक छावनी के विद्रोह सैनिकों की सिपाही बहादुर सरकार कोतवाली पर काबिज रही, पोलिटिकल एजेंट कार्यालय एवं निवास वतर्मान कलेक्ट्रेट अंग्रेजों के बंगले जंगली अहाता स्थित चर्च ओर पोस्ट आफिस विद्रोहियों के आधिपत्य में रहे। सीहोर के सम्पूर्ण केन्टोमेंट इलाके पर नवम्बर 1857 तक विद्रोहियों की सिपाही बहादुर सरकार का कब्जा रहा। लगभग पांच महीने तक सीहोर छावनी स्वतंत्र रही। परिणामस्वयप सर ह्यूरोज ओर सर राबर्ट हामिल्टन को महू से सेंट्रल इंडिया फील्ड फोर्स के साथ 6 जनवरी 1858 को सीहोर कूच करने का हुक्म मिला। सर ह्यूरोज दल बल और तोपखाना लेकर 8 जनवरी 1858 को सीहोर आ गया। सीहोर आकर ह्यूरोज ने बड़ी निर्ममता से 149 विद्रोही सिपाहियों को पकडकर उन्हें पलटन एरिए में पंक्तिबद्ध खड़े कर 15 जनवरी 1858 को गोलियों से भून डाला। सैनिक जमादार इनायत हुसैन खां को तोप के मुंह से बांधकर उड़ा दिया। उस दिन सीवन नदी सिर धुनती रही। उसका पानी देशभक्तों के खून से लाल हो गया था। इससे पहले 6 अगस्त को बहुत से देशभक्त सीवन की लहरों में समा गए थे। गोरे जालिमों ने देशभर में विद्रोही सिपाहियों की टुकड़े-टुकड़े कर फेंक दिया था, कई सौ देश भक्तों का गर्म खून इस सीहोर की मिट्टी में समाया हुआ है। सन 1908 में प्रकाशित भोपाल स्टेट गजेटियर में उल्लेखित सीहोर के दशहरा बाग में अंग्रेजों और तत्कालीन नरसिंहगढ़ रियासत के कुंवर चैनसिंह के बीच हुई लड़ाई को तथ्यांकित करती है। भोपाल स्टेट गजेटियर के इस अंश के अनुसार सन 1857 के सीहोर सैनिक छावनी विद्रोह 6 अगस्त 1857 के 33 वर्ष पहले नरसिंहगढ़ रियासत के राजकुंवर चैनसिंह ने अंग्रेजों से लोहा लिया था। हालांकि कुंवर चैनसिंह अंग्रेजों से हुए इस युद्ध में हार गए थे और उन्हें 24 जून 1824 को अपने 43 विश्वस्त साथियों के साथ सीहोर के दशहरा वाले बाग के मैदान में मौत को गले लगाना पड़ा, कुंवर चैनसिंह ओर उनके साथियों की इस शहादत का अपना महत्व है। 1824 की यह घटना नरसिंहगढ़ रियासत के युवराज कुंवर चैनसिंह को इस अंचल के पहले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के रूप में प्रतिष्ठित करती है। इस संदर्भ में यह भी उल्लेख करना जरूरी है कि भोपाल नवाब नजर मोहम्मद खां जिन्हें नजर उद्दोला व नजर खान भी कहते हैं सन 1818 में ईस्ट इंडिया कंपनी के कैप्टन स्टुवर्ड के साथ रायसेन में एक दुरभि संधि की थी, जिसे रायसेन समझौता भी कहा जाता है। इस संधि के आधार पर ही अंग्रेजों ने सन 1818 में सीहोर को अपनी सैन्य छावनी का रूप दिया। मिस्टर मेडांक अंग्रेजों के प्रथम राजनैतिक प्रतिनिधि की हैसियत से इसी वर्ष सीहोर आए। मि. मेडांक के अंतर्गत भोपाल नवाब की फौज एक हजार सैनिक 600 घुड़सवार एवं 400 सैनिक सीहोर में भोपाल बटालियन के नाम से तैनात किए गए, जिन्हें भोपाल खजाने से वेतन दिया जाता था, लेकिन नियंत्रण इस्ट इंडिया कंपनी के राजनैतिक प्रतिनिधि के हाथ में था। अंग्रेजों ओर कुंवर चैनसिंह के विवाद की पृष्ठभूमि समझने के लिए तत्कालीन नरसिंहगढ़ रियासत में अंदरूनी हालातों की चर्चा करना भी यहां जरूरी है। अंग्रेजों ने अपनी साम्राज्यवादी लिप्सा के वशीभूत होकर नरसिंहगढ़ रियासत से तत्कालीन महामंत्री आनंदराम बश्खी को प्रलोभन देकर अपनी और मिला लिया था, ताकि बख्शी के माध्यम से उन्हें नरसिंहगढ़ राज्य परिवार को गुप्त जानकारियां मिलती रहें। कुंवर चैनसिंह को जब विश्वासघाती मंत्री की कार गुजारियों का पता चला तो उन्होंने अपने पिता के विरोध के बावजूद बख्ती को मौत के घाट उतार दिया। इंदौर के होल्कर राजा लारा अंग्रेजों के विरूद्ध मध्य भारत के देशी रजवाड़ों की बैठक बुलाने ओर उसमें कुंवर चैनसिंह के भाग लेने की जानकारी अंग्रेजों के सीहोर स्थित पोलिटेकिल एजेंट मि. मेडांक को नरसिंहगढ़ रियासत के एक अन्य मंत्री रूपराम बोहरा ने दी थी, कुंवर चैनसिंह ने उसे इस कृत्य की सजा भी मौत के घाट उतार कर दी। अंग्रेज यह कैसे बर्दाश्त करते कि एक देशी रियासत का राजकुंवर चैनसिंह एक के बाद एक अपराध करते रहे ओर अंग्रेजों के विरूद्ध होने वाली साजिशों में शामिल रहे। परिणामस्वरूप कुंवर चैनसिंह के संबंध में सीहोर स्थित पोलिटिकल एजेंट ने कलकत्ता स्थित गर्वनर जनरल को शिकायती पत्र लिखकर सारे घटनाक्रम की जानकारी भेजी। कहते हैं कि कुंवर चेनसिंह नरसिंहगढ़ से अपने विश्वस्त साथी नरसिंहगढ़ से अपने विश्वस्त साथी सारंगपुर निवासी हिम्मत खां और बहादुर खां सहित सैनिकों की टुकड़ी के साथ सीहोर आए थे, जहां अंग्रेज पोलिटिकल एजेंट सीहोर की वतर्मान कलेक्ट्रेट के सभाकक्ष में कुंवर चैनसिंह और मि. मेडांक का आमना सामना हुआ। लोक श्रुति के अनुसार मेडांक ने चैनसिंह की तलवार की प्रशंसा करते हुए उनसे देखने के लिए उनकी तलवार मांगी। कुंवर चैनसिंह द्वारा एक तलवार दे देने पर मि. मेडांक ने दूसरी तलवार देखने की इच्छा व्यक्त की। संभवत: कुंवर चैनसिंह अंगे्रजों की साजिश को भांप गए और उन्होंने अपनी दूसरी तलवार यह कह कर नहीं दी कि राजपूत की कमर शस्त्रविहिन नहीं रहती। मेडांक ने बिना समय गवांए चैनसिंह को बंदी बनाने का आदेश दे दिया। जिसकी प्रतिक्रिया यह हुई कि कुंवर चैनसिंह ने अपनी तलवार खींच ली ओर वे लड़ते हुए सभाकक्ष से बाहर आए और वहां खड़े घोड़े पर सवार होकर साथियों के साथ चल दिए। सीहोर के वतर्मान तहसील चौराहे पर बताते है कुंवर चैनसिंह के साथियों ओर अंग्रेजों के बीच जमकर संघर्ष हुआ एक ओर कुंवर चैनसिंह के साथ मु_ी पर विश्वस्त साथी थे तो दूसरी और शस्त्रों से सुसज्जित अंग्रेजों की फौज। घंटों की लड़ाई में अंगे्रजों के तोपखाने ओर बंदूकों के सामने कुंवर चैनसिंह के जांबाज लड़ाके खेत रहे। कुंवर चेनसिंह के अंगरक्षक बने विश्वस्त साथी हिम्मत खां व बहादुर खां अपनी जान पर खेलकर उन्हें बचाए रहे। चैनसिंह को लोटिया पुल के पास पुन: अंंगे्रजों ने घेर लिया, वहां कुंवर चैनसिंह ओर हिम्मत खां और बहादुर खां के साथ बचे-खुचे मु_ी भर सैनिकों ने जमकर मोर्चा लिया। कुंवर चैनसिंह की बहादुरी देखकर मि. मेडांक हतप्रद था। अंग्रेजों की फौज के मुकाबले कुंवर चैनसिंह भारी पड़ रहे थे, लोटिया पुल पर आकर स्थानीय दशहरा वाले मैदान कहे जाने वाले क्षेत्र में कुंवर चैनसिंह हिम्मत खां और बहादुर खां ने अंग्रेजों के विरूद्ध अंतिम सांस तक संघर्ष किया। जानकारी के अनुसार शहर में देश के पहले शहीद की निशानी चैनसिंह की छतरी स्थित है और वहां पर शासकीय स्तर पर नियमित आयोजन नहीं होते हैं। बहरहाल बात जो भी हो यह स्पष्ट है कि मंगल पाण्डे से अंग्रेजों कुशासन के विरूद्ध कुंवर चैनसिंह ने न केवल पहले आवाज उठाई बल्कि उनसे टकराकर अपने प्राण भी मातृभूमि के लिए न्यौछावर कर दिए, लेकिन न जाने क्यों देश में मंगल पांडे का नाम तो लिया जा रहा और चैनसिंह को नजर अंदाज किया जा रहा है। देश प्रेम का जिनमें जज्बा होता है उनके लिए यह पक्तिंया सटीक है।
खिदमते मुल्क में जो भी मर जाएंगे, वो अमर नाम दुनिया में कर जाएंगे।
यह न पूछो की मरकर किधर जाएंगे, वो जिधर भेज देगा उधर जाएंगे।

Sunday, November 7, 2010

मुख्यमंत्री अपने गांव में अपनों के बीच



सीहोर। हर वर्ष की तरह इस बार भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भाई दूज का त्यौहार मनाने अपने गांव जैत पहुंचे। क्षेत्रवासी इस बात को लेकर खासे उत्साहित थे कि मुख्यमंत्री भाई दूज की पूर्व संध्या पर ही जैत पहुंच गए। मुख्यमंत्री ने यहां पूरे विधि विधान से भाई दूज की परंपराओं का निर्वाह किया और ग्रामवासियों से स्नेहपूर्वक मिलकर दीपावली की शुभ कामनाओं का आदान-प्रदान किया। उनके साथ उनका परिवार भी जैत पहुंचा। धर्मपत्नी श्रीमती साधना सिंह तथा पुत्र कुणाल और कातिर्केय भी मुख्यमंत्री के साथ थे।मार्ग में श्री चौहान का जैत के रास्ते में पड़ने वाले नगर शाहगंज और डोबी में भावपूर्ण स्वागत किया गया। शाहगंज में माकर्फेड अध्यक्ष रमाकांत भार्गव, वेयर हाउसिंग कार्पोरेशन के अध्यक्ष राजेन्द्र सिंह राजपूत, सलकनपुर मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष महेश उपाध्याय सहित अनेक पार्टी कार्यकर्ताओं ने मुख्यमंत्री की अगवानी कर उनका पुष्पहारों से स्वागत किया। यहां दीपावली की शुभकामनाओं का आदान-प्रदान कर मुख्य मंत्री आगे बढ़े तो ग्राम डोबी में जिला पंचायत अध्यक्ष धर्मेन्द्र सिंह चौहान के नेतृत्व में अनेक जन प्रतिनिधियों एवं ग्रामवासियों ने मुख्यमंत्री का गर्म जोशी से स्वागत किया और एक दूसरे को दीपावली की शुभकामनाएं दी।अपने गांव में अपनों के बीच जैत पहुंचते ही मुख्यमंत्री ने ग्राम में सर्वप्रथम ग्राम देवता को नमन किया और श्री हनुमान जी के मंदिर में मस्तक नवाया और फिर वे जा बैठे मिलने वालों के बीच जहां दीपावली की हार्दिक शुभकामनाओं के आदान प्रदान के बीच सुख - दुख की बातें हुई। इस दौरान मुख्यमंत्री ने ग्रामीणों से क्षेत्रीय गतिविधियों की जानकारी ली।क्षेत्र के विकास की चिन्ता त्यौहार के इस माहौल में भी मुख्य मंत्री क्षेत्र के विकास की बात करना नहीं भूले। उन्होंने सड़क, बिजली, पानी जैसे मुद्दों पर ग्रामीणों सहित अधिकारियों से व्यापक चर्चा की। ग्रामीणों लारा रिछोड़ा, बासगेहन और गादर की सड़कों के बदहाल होने और शाहगंज - डहोटा मार्ग का कार्य गुणवत्तापूर्ण नहीं होने की जानकारी मुख्यमंत्री को दी जिस पर वे थोड़े असहज नजर आए और उन्होंने लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों को हिदायत दी कि काम ठीक से किए जांय। खासकर कार्यों की गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं किया जाय। जिला पंचायत अध्यक्ष श्री धर्मेन्द्र सिंह चौहान ने भी सड़क कार्यों को लेकर अप्रसन्नता व्यक्त की।रोशनी के रंग बिखरे मुख्यमंत्री के जैत पहुंचने पर उनके परिवार ने भी ग्रामीणों से घुल-मिलकर एक दूसरे को दीप पर्व की शुभकामनाएं दी। मुख्यमंत्री के दोनों पुत्रों कुणाल और कातिर्केय ने ग्रामीण बच्चों के साथ बाल शुलभ अंदाज में आतिशबाजी चलाई और देखते ही देखते जैत का आकाश रंगीन आतिशबाजी से नहा उठा।
परंपराओं का निर्वाह भाई दूज की प्रात: मुख्यमंत्री ने नमर्दा स्नान कर माँ नमर्दे की पूजा अचर्ना की। त्यौहार की परंपराओं के अनुरूप पैत्रक निवास पर पूजा अचर्ना कर अन्य धार्मिक रीति रिवाज पूरे किए।जागा मछुआरों का भाग्य भाई दूज का त्यौहार मछुआरों के लिए तब शुभ साबित हो गया जब मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह ने यहां के 16 मछुआ परिवारों को 40 - 40 हजार की लागत से निर्मित डोंगिया प्रदान की। मछुआरों को यह डोंगिया स्वर्ण जयन्ती योजना के तहत प्रदान की गई। उनके अलावा अन्य परिवारों को भी डोंगिया प्रदान किया जाना सुनिश्चित किया गया है जिसमें स्व-सहायता समूह से जुड़ें 41 परिवारों को भी डोगियां प्रदान की जांयगी।बीमारों को मिली इलाज की सुविधा मुख्यमंत्री ने यहां बद्री लुकवा को 50 हजार और नारायणपुर निवासी छोटीबाई पन्नालाल को बीमारी के इलाज के लिए 10 हजार रूपये की राशि प्रदान की वहीं मुख्य चिकित्सा अधिकारी को निर्देश दिए कि वे टीकाराम नंदलाल केवट का इलाज कराएं और उसे कृत्रिम हाथ लगवाएं। इस अवसर पर माकर्फेड अध्यक्ष श्री रमाकांत भार्गव, वेयर हाउसिंग कार्पोंरेशन के अध्यक्ष राजेन्द्र सिंह राजपूत, सलकनपुर मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष महेश उपाध्याय, जिला पंचायत अध्यक्ष धर्मेन्द्र सिंह चौहान, पूर्व नगर पंचायत अध्यक्ष बुधनी आजाद सिंह राजपूत, भाजपा जिला महामंत्री श्री वीरसिंह चौहान, अनंत सिंह, लाल सिंह, श्री महेन्द्र भाऊ, श्री यशवन्त सिंह, श्री विजय सिंह टेकरी और श्री रेवेन्द्र पटेल सहित बड़ी संख्या में क्षेत्रवासी उपस्थित थे। मुख्यमंत्री की नाराजी मुख्यमंत्री बिजली और बारना परियोजना के अधिकारियों से खफा नजर आए और उन्होंने यह साफतौर पर कहा कि बताए गए काम में लैतलाली बरतना इन विभागों के अधिकारियों को महंगा पड जायगा। हुआ यह कि जब मुख्यमंत्री ग्रामीणों से क्षेत्र की स्थिति पर चर्चा कर रहे थे तो ग्रामीणों ने बारना नहरों की ठीक तरह सफाई न होंने और टेल एरिया के किसानों को पानी नहीं मिलने की मुख्य मंत्री से शिकायत की। इसी तरह बिजली विभाग की लापरवाही को भी ग्रामीणों ने उजागर किया। मुख्यमंत्री ने इस स्थिति पर खासा एतराज जताया और कहा कि अधिकारी हालातों को तत्परता से दुरूस्त कर लें अन्यथा उनके खिलाफ तगड़ा एक्शन लिया जायगा। इस मौके पर कलेक्टर संदीप यादव और पुलिस अधीक्षक केडी पाराशर सहित विभिन्न विभागों के अधिकारी मौजूद थे। किसान भवन बनेगा भाई दूज के शुभ अवसर पर मुख्यमंत्री ने अपने गांव जैत को किसान भवन देने की घोषणा की। उन्होंने किसान भवन की मंजूरी देते हुए कहा कि जैत में शीध्र ही किसान भवन बनकर तैयार होगा। इसी तरह उन्होंने ग्राम खैरी सिलगैना में भी मंगल भवन बनाए जाने को मंजूरी दी।